
जळगाव: तांबापुरा समेत शहर की अन्य झोपड़पट्टियों को हटाने की योजना को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या यह वास्तव में स्लम पुनर्विकास योजना है, या इसके पीछे कोई बिल्डर लॉबी काम कर रही है? जळगाव शहर महानगर पालिका ने धारावी मॉडल पर तांबापुरा, हरिविट्ठल नगर, खाडेराव नगर और अन्य झोपड़पट्टियों को हटाकर बहुमंजिला इमारतें बनाने की योजना बनाई है, लेकिन इस फैसले के पीछे छुपी सच्चाई क्या है?
झोपड़पट्टी हटाओ, बिल्डर बसाओ?
तांबापुरा और अन्य झोपड़पट्टियों को विकसित करने के नाम पर वहां के रहवासियों को दूसरी जगह भेजने की चर्चाएं तेज हो गई हैं। सवाल यह उठता है कि क्या यह सिर्फ झोपड़पट्टीवासियों को वाजिब घर देने का प्रयास है, या फिर इसके पीछे कोई बड़ा मास्टरमाइंड छुपा हुआ है? शहर के कुछ राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह योजना असल में एक बड़ी बिल्डर लॉबी को फायदा पहुंचाने के लिए लाई गई है, ताकि इन बहुमूल्य जमीनों पर महंगी रिहायशी और व्यावसायिक इमारतें खड़ी की जा सकें।
क्या झोपड़पट्टीवासियों की सहमति ली गई?
जळगाव शहर महानगर पालिका का कहना है कि झोपड़पट्टीवासियों की सहमति से ही यह योजना लागू होगी, लेकिन हकीकत यह है कि अधिकांश रहवासी इस फैसले से अनजान हैं। कई लोगों का आरोप है कि बिना सही जानकारी और स्पष्ट दस्तावेज़ों के उन्हें सिर्फ सुनहरे सपने दिखाए जा रहे हैं।

तांबापुरा रहिवासियों की मुख्य मांग – हमें हमारी ज़मीन का हक चाहिए!
तांबापुरा के रहिवासियों ने इस योजना का विरोध करते हुए साफ कहा है कि उन्हें किसी भी हालत में दूसरी जगह नहीं जाना है। उनकी मांग है कि पहले उनके नाम से सातबारा का उतारा निकाला जाए और सरकारी योजना के तहत उसी जगह पर पक्के मकान बनाने की अनुमति दी जाए। अगर सरकार झोपड़पट्टीवासियों को घर देना चाहती है, तो उन्हें उनकी ही ज़मीन पर मकान बनाने की मंजूरी दी जानी चाहिए, न कि उन्हें दूसरी जगह शिफ्ट किया जाए।

तांबापुरा के नागरिकों का कहना है कि अगर सरकार सच में गरीबों के हक में फैसला लेना चाहती है, तो उन्हें योजना का पैसा सीधे उनके घर के निर्माण के लिए दिया जाए, ताकि वे उसी स्थान पर अपने स्थायी पक्के मकान बना सकें। सरकार को बहुमंजिला इमारत बनाने के बजाय झोपड़पट्टीवासियों को कानूनी हक देकर उनके मौजूदा स्थान पर ही विकास कार्य करना चाहिए।
क्या बिल्डरों को सौंपने की तैयारी?
शहर में इस बात की भी चर्चा है कि तांबापुरा समेत अन्य झोपड़पट्टियों की ज़मीनें करोड़ों की कीमत की हैं। अगर यहां बहुमंजिला इमारतें बनती हैं, तो क्या वास्तव में गरीबों को उनके हक के घर मिलेंगे, या फिर यह जमीनें किसी बिल्डर लॉबी के हाथों में चली जाएंगी? कई बार ऐसा देखा गया है कि स्लम पुनर्विकास के नाम पर झोपड़पट्टीवासियों को बेघर कर दिया जाता है, और उनकी जमीनें प्राइवेट कंपनियों को सौंप दी जाती हैं।
क्या सरकार गरीबों को बेघर करने पर तुली है?

क्या यह योजना सिर्फ एक शुरुआत है? क्या जळगाव शहर महानगर पालिका धीरे-धीरे पूरे शहर से झोपड़पट्टी खत्म करने के एजेंडे पर काम कर रही है? अगर ऐसा है, तो झोपड़पट्टी में रहने वाले गरीब लोगों का क्या होगा? क्या उन्हें वाकई उनके हक का घर मिलेगा, या फिर वे बेघर होकर इधर-उधर भटकने को मजबूर हो जाएंगे?
तांबापुरा के लोगों का क्या कहना है?
तांबापुरा के कई निवासियों ने इस योजना पर नाराजगी जाहिर की है। उनका कहना है कि अगर सही और पारदर्शी तरीके से मकान मिलते हैं तो वे तैयार हैं, लेकिन अगर यह सिर्फ एक बिल्डर लॉबी को फायदा पहुंचाने की चाल है, तो वे इसका विरोध करेंगे। उनका स्पष्ट कहना है कि अगर सरकार उनकी भलाई चाहती है, तो उन्हें सातबारा के मालिकाना हक के साथ उसी जगह पर घर बनाने का अधिकार दिया जाए।
आखिर सच्चाई क्या है?

क्या तांबापुरा का विकास वास्तव में वहां के गरीबों की भलाई के लिए किया जा रहा है? या फिर इसके पीछे किसी बड़े बिल्डर और नेताओं की मिलीभगत है? यह सवाल अब हर झोपड़पट्टीवासी के दिमाग में घूम रहा है। जळगाव शहर महानगर पालिका को इस पर स्पष्टता लानी होगी, ताकि झोपड़पट्टीवासियों को उनके भविष्य को लेकर कोई धोखा न दिया जाए?
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